हार्मोनियम
यह एक वायु
से चलने वाला
पाश्चात्य वाद्य
है। किन्तु आजकल
भारत में भी
इसका बहुत प्रचार
है। इसका अविष्कार
पेरिस शहर के
अलेक्जेण्डर डेबैन ने
सन् 1840 ई० में
किया था। यह
एक बक्से जैसा
वाद्य है। स्त्ररों
का प्रयोग करने
के लिए सफेद
तथा काली, दो
प्रकार की स्वर
पटड़ियां लगी
होती हैं, जिन्हें
दाएं हाथ की
अँगुलिओं से
दबाने पर स्वर-लहरी उत्पन्न होती
है। इसके भीतर
पीतल की पत्ती
वाले रीड लगे
होते हैं और
बाहर की ओर
हवा भरने के
लिए बैलो (पंखा)
लगा होता है,
जिसको बाएं हाथ
से आगे पीछे करने
पर हार्मोनियम में
हवा भर जाती
है। फिर वही
हवा रोड में
से निकल कर
स्वर उत्पन्न करती
है। हार्मोनियम के
सामने की ओर
स्टाप (stops) लगे होते
हैं जिन को
खोलने और बन्द
करने पर, हार्मोनियम
के भीतर की
हवा को आवश्यकता
अनुसार प्रयोग कर
के ध्वनि हल्की
और भारी की
जानी है। इन्हीं
स्टापों में
कुछ स्टाप ऐसे
होते हैं जो
प्रथम स्वर (Key Notes) का काम देते
हैं। इन स्वरों
को हाथ से
बजाना नहीं पड़ता
। केवल पंखा
(बैलो) चलाने से
वे स्वतः बजते
हैं। यदि सभी
स्टाप बन्द कर
दिए जाएं तो
हार्मोनियम से
ध्वनि निकलनी बन्द
हो जाती है।
इसलिए प्रयोग करने
के पूर्व स्टाप
खोल देने चाहिए
और प्रयोग करने
के बाद बन्द
कर देने चाहिए।
हार्मो नियम अनेक
प्रकार के होते
हैं। हार्मोनियम् का
एक प्रकार सफरी
हार्मोनियम होता
है जिसके भागों
को मोड़कर छोटा
कर लिया जाता
है। वह उठाने
में हल्का और
देखने में लघु-आकार का होता
है। आधुनिक समय
में हार्मोनियम-निर्माताओं
ने अत्यन्त सुन्दर
नमूनों के हार्मोनियमों
का निर्माण किया
है।
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