पकड़ या मख्य अंग
प्रत्येक राग का अपना विशिष्ट स्वरूप होता है जांकि उसकी सुन्दरता और मधुरता में
वृद्धि करता है जिससे उम राग की पहचान होती है। ऐसे स्वर-समूह को पकड़ कहते हैं।
पकड़ के स्वरों में यह आवश्यक नहीं होता कि राग में आने वाले सभी स्वरों को लिया
जाए। पकड़ के स्वरों का समूह उन राग के स्वरूप को स्पष्ट करता है इसलिये इसको राग
का मुख्य अंग भी कहा जाता है।
इसका प्रयोग राग को जिस से श्रोताओं को राग की गाते हुए बीच-बीच में बार-बार किया
जाता है पहचान होती रहती है। जैसे राग खमाज की
पकड़ है :
नी ध, म प ध, म ग।
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