।। अलंकार ।।
हमारे ग्रंथकारों ने अलंकार को इस प्रकार परिभाषित किया है:"विशेष वर्ण संदर्भालंकार प्रचक्षते"
का अर्थ है कि विशेष वर्णों का समूह अलंकार है। क्रमानुसार और नियमबद्ध स्वर समुदायों को कुछ ग्रंथकारों ने अलंकार कहा है।
संस्कृत शब्द अलंकार का अर्थ है आभूषण या गहना। संगीतकार भी अलंकारों से अपने गायन और वादन को
सजाते हैं, जैसे हम अपने शरीर को आभूषण या गहनों से सजाते हैं| अलंकारों का क्रम नियमित है किसी अलंकार
का अवरोह उसके आरोह का उल्टा होता है। ऐसे-
आरोह : स रे ग म प ध नी सं
अवरोह : सं नी ध प म ग रे स
विभिन्न लयों के आधार पर अलंकारों का प्रयोग उलटे या सीधे क्रम में होता है। जैसे
स रे ग, रे ग म, ग म प...... या ….स रे ग रे, रे ग म ग, ग म प म... आदि।
इस अलंकार का अभ्यास ताल दादरा में हम इस तरह कर सकते हैं:-
अलंकार का अभ्यास ताल कहरवा में जैसे:-
अलंकार का अभ्यास ताल झपताल में इस प्रकार कर सकते हैं:-
अलंकारों में शुद्ध और कोमल स्वर होते हैं। रागों के स्वर भी अलंकारों को बताते हैं। पलटा और अलंकार
एक ही है। "पलटा"
शब्द का अर्थ है "उलटना"। यह शब्द मुस्लिम काल के समय के ग्रंथों में पाया जा सकता है।
अलंकारों का महत्व:-
भरत मुनि जी ने अपने ग्रंथ 'नाट्य शास्त्र' में लिखा है कि गीत बिना अलंकारों के वैसे ही लगता है जैसे निशा
बिना चंद्रमा, नदी बिना जल और लता बिना फूल। भरत मुनि कहते हैं कि अलंकार राग साँद्रय बहुमूल्य है।
अलंकारों का अभ्यास स्वर की समझ को बढ़ाता है और सही लय का पता लगाता है।
वादक की उंगलियाँ साज पर सध जाती हैं और गायक का कंठ सध जाता है। साथ ही, वादन और गायन दोनों में
रस और लोच होता है। कुल मिलाकर, संगीत की शान स्वर है।
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