॥ स्वरमालिका ॥
केवल राग के स्वरों में स्वरमालिका की रचना होती है, शब्दों में नहीं। इसके स्थाई अंतरा में दो भाग हैं। विद्यार्थियों को स्वर और राग का ज्ञान देना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। सरगम या सुरावर्त भी स्वरमालिका का नाम है। इसे इस तरह परिभाषित कर सकते हैं; स्वरमालिका एक तालबद्ध रचना है जिसमें सिर्फ राग के स्वर प्रयोग किए जाते हैं। यह मध्य लय में और हर राग में हो सकता है। यह विभिन्न तालों में गाया जाता है, जैसे ताल झपताल, तीन ताल और एक ताल।
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