|| ध्रुपद ||
ध्रुपद एक पुरानी और कठोर गायन शैली है। ध्रुपद प्रबन्ध, वस्तु
और रूपक के गेय पदों से उत्पन्न हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि ध्रुपद 13वीं
सदी में पंडित शारंगदेव के समय बनाया गया था, लेकिन कुछ दूसरे विद्वानों का कहना
है कि यह 15वीं सदी में ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर ने बनाया था, जिसका बहुत
प्रचार हुआ था। ध्रुपद गायक को 'कलावंत' कहा गया था। ध्रुपद गाने से फेफड़ों और
कंठों पर अधिक बल मिलता है। मर्दाना गायकी भी शब्द है जिसे ध्रुपद कहते हैं।
ध्रुपद काव्य उच्च प्रकार का है और इसकी भाषा बृज, हिन्दी और उर्दू है।
मध्यकाल में ध्रुपद गायन बहुत प्रसिद्ध था। इसका स्थान आज ख्याल गायकी ने लिया है।
ध्रुपद गायन में वीर रस, भक्ति रस, शांत रस और श्रृंगार रस सबसे अधिक
महत्वपूर्ण हैं। ध्रुपद को पखावज के साथ चौताल या चार ताल, सूलताल, मत्तताल आदि तालों में
गाया जाता है। ख्यालों की तरह ध्रुपद गायन में तान-पलटे नहीं गाए जाते।
ध्रुपद गायक ताल रहित नोम् तोम् में आलाप करते हैं। पूर्वकालीन आलाप में 'ओम् अनंत
नाम हरि' कहा जाता है। इसमें मींड और गमक का बहुत प्रयोग होता है। तानों को
ना गाकर लयकारियों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। दुगुन, तिगुन,
चौगुन, अठगुन, आड़ और सम इसका सौन्दर्य बढ़ाते हैं। बोल बाटों का काम भी कभी-कभी
दिखाया जाता है।
स्थाई, अंतरा, संचारी और आभोग ध्रुपद
के चार भाग हैं। लेकिन आज ध्रुपद के गीतों में स्थायी अंतरा केवल दो भाग हैं। अकबर
के शासनकाल में हरिदास, तानसेन और बैजू सब ध्रुपद गायक थे। सदारंग, अदारंग गायक
मुहम्मद शाह रंगीले के दरबारी बहुत ऊमदा और ध्रुपद गायक थे। ख्याल गायन का
प्रचार इतना बढ़ गया कि आज भी ध्रुपद गायन कहीं-कहीं सुनने को मिलता है।
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