Tanpura (Hindi) || तानपुरा ||

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Tanpura (Hindi) || तानपुरा ||

 

तानपुरा

|| तानपुरा ||

        भारतीय शास्त्रीय संगीत का मूल आधार तानपुरा है। तम्बूरा इसका मूल नाम था। माना जाता है कि तुम्बरु नामक एक गंधर्व ने इस वाद्य का आविष्कार किया था। कुछ लोगों के अनुसार यह एक "इकतारा" या "एकतन्त्री" वाद्य का विकसित संस्करण हैं। इस वाद्य का नाम तानपुरा समय के साथ बदल गया।
        इस वाद्य का प्रयोग स्वर देने के लिए गायन और वादन में होता है। गायक और वादक दोनों के दिलों को तानपुरा की झनकार धड़काती है। गायक और वादक को तानपुरे की विधि से - या - मुख्य स्वर प्रत्यक्ष रूप से सुनाई देते रहते हैं, लेकिन रहस्यमय रूप से सात स्वर पैदा होते रहते हैं, जिस को हम सहायक नाद कहते हैं।

तानपुरे के ढ़ांचे का ज्ञान:-
(1) तूम्बा:-
        यह सूखे तूम्बे का खोल है। ऊपर से चपटा है और नीचे से गोल है। इससे तानपुरे की आवाज़ निकलती है।
(2) तबली:-
        तबली तुम्बे के ऊपर का टुकड़ा काटकर खोखले हिस्से को लकड़ी के टुकड़े से ढकने को कहते हैं।
(3) ब्रिज (पुल):-
        इसे घोड़ी या घुड़च भी कहते हैं, जो तबली के ऊपर हड्डी की चौंकी के आकार की होती है। चारों तार इसके ऊपर रखे जाते हैं।
(4) सूत या धागा:-
        तारों के बीच ब्रिज के ऊपर सूत या धागे का प्रयोग किया जाता है , इससे तानपुरे की झनकार बढ़ती है।
(5) लंगोट या मोंगरा:- 

        मोंगरा या लंगोट नामक तिकोनी पट्टी जो कि तारों को बांधने के लिए तुम्बे के बीच में  होती है।
(6) डांड: -
        तारें खिंची रहने के लिए तुम्बा लकड़ी के खोखले डंडे से जुड़ा है।
(7) गुल्लु:-
        तुम्बे और डांड के जोड़ के स्थान को 'गुलकहते हैं; इसे गुल्लु भी कहते हैं।
(8) अटी या तारदान:-
        तार खूंटियों से बांधे जाते हैं जो कि डांड के ऊपरी भाग से हड्डी की दो पट्टियों से निकलती हैं। ये तारदान या अटी कहलाते हैं।
(9) खूंटियां:-
        ये चार तारें स्वर करने के लिए होती हैं जो कि तानपुरे के ऊपरी हिस्से में हैं|
(10) तार:-

        तानपुरे में चार तारें हैं। पहली तार मंद्र पर है, दूसरे दो तार जोड़े की तारें मध्य पर हैं, और चौथी तार मंद्र पर है।
(11) मनके:-
        लंगोट तक ब्रिज के चारों तारों में मनके पिरोए जाते हैं, जिससे स्वर के छोटे-छोटे अंतर को ठीक किया जाता है।
(12) पत्तियां:-
        श्रृंगार नामक सुंदर पत्तियां तुम्बे को सजाने के लिए बनाई होती हैं।
तार मिलाने की विधि:-

        तानपुरे को चार तारें मिलाकर बनाया जाता है। पहली तार मंद्र सप्तक के '' या जिन रागों में '' स्वर प्रतिबंधित है, मंद्र '' पर मिलाते हैं। जब कुछ रागों (जैसे मारवा, पूरिया) में और दोनों स्वर प्रतिबंधित होते हैं, तो पहली तार को मंद्र नी पर मिलाते हैं। मध्य '' तानपुरे की दूसरी और तीसरी तार को मिलाता है। मंद्र 'स़' चौथी तार पर है।
पुरुषों के तानपुरे की पीतल की पहली तार तथा स्त्रियों की पहली तार लोहे की होती है। दूसरी और तीसरी लोहे की तारें और चौथी पीतल की तारें पुरुषों के तानपुरे की तरह हैं। धागे को आगे पीछे करने से अच्छी झनकार निकलती है  तथा (आगे पीछे) छोटे-छोटे अंतर को ठीक करने के लिए मनकों का प्रयोग करते हैं।




 

 

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