।। रागों का समय सिद्धांत ।।
जीवन का अनिवार्य हिस्सा परिवर्तन ही है, जो समय के साथ
होता है। अनुशासन समय की गतिशीलता से मिलता है। जीवन में आगे समय की कदर करने वाले
ही बढ़ते हैं और भाग्य उनका साथ देता है।
हमारे संगीत में भी समय बहुत महत्वपूर्ण है। रागों को समय पर रागों का गाना
हमें शांति, कोमलता और गहराई देता है। सुबह राग भैरव बजाया जाता है।
दोपहर को राग सारंग गाया जाता है। रात को राग मालकाँस गाया जाता है। मेघ और
मल्हार जैसे राग वर्षा के दिनों में गाए जाते हैं। बसंत राग या बहार राग बसंत के
दिनों में गाया जाता है। होली के दिनों में राग काफी गाया जाता है। यह
राग मौसमी राग भी कहलाता है।
पूर्वांग और उत्तरांग वादी राग:-
स रे ग म सप्तक का पहला भाग
पूर्वांग और प ध नी सं सप्तक का दूसरा
भाग उत्तरांग कहलाता है। वादी स्वर सप्तक के पहले भाग में से होने वाले रागों को
पूर्वागवादी राग कहते हैं। दिन के बारह बजे से रात के बारह बजे तक ये राग गाए जाते
हैं। वादी स्वर सप्तक के दूसरे भाग में स्थित रागों को उत्तरांगवादी राग कहते हैं।
रात के बारह बजे से दिन के बारह बजे तक ये राग बजाए जाते हैं।
रागों के तीन वर्ग गुणी जनों ने रागों को शुद्ध और कोमल मानते हुए बनाए हैं:-
(1) कोमल स्वर रे ध वाले राग,(2) शुद्ध स्वर रे ध वाले राग,
(3) कोमल स्वर ग नी वाले राग,
(1) कोमल स्वर रे ध वाले राग:-
संधिप्रकाश राग सुबह और चार बजे से बजे तक बजाए जाते हैं। राग भैरव जैसे प्रातःकालीन संधि प्रकाश राग कहलाता है जो कि सुबह गाए बजाए जाते हैं । मारवा और पूर्वी राग जैसे सांयकालीन संधि प्रकाश राग कहलाता है जो कि शाम को गाए बजाए जाते हैं। शुद्ध म का प्रयोग सुबह के गानों में होता है। तीव्र म का प्रयोग शाम के गीतों में होता है।(2) शुद्ध स्वर रे ध वाले राग:-
ये सुबह 7 बजे से 10 बजे तक और रात 7 बजे से 10 बजे तक बजाए जाने वाले राग हैं। इन रागों में शुद्ध रे, ग और ध स्वर प्रयोग किए जाते हैं। राग आसावरी और बिलावल जैसे राग सुबह 7 से 10 बजे तक गाए जाते हैं, जैसे । राग केदार और हमीर भूपाली जैसे राग रात को 7 से 10 बजे तक गाये जाने वाले रागों में से हैं।(3) कोमल स्वर ग नी वाले राग:-
यह राग दिन में 10 बजे से 4 बजे तक और रात में 10 बजे से 4 बजे तक गाए बजाए जाते हैं। रागों की एक विशेषता यह है कि इनमें कोमल 'ग' अवश्य होता है। दिन में दस से चार बजे तक गाए जाने वाले रागों में सारंग, जौनपुरी, भीमपलासी आदि शामिल हैं। रात को दस से चार बजे तक मालकाँस, दरबारी कान्हड़ा जैसे राग गाए जाते हैं।मौसमी राग :-
ये राग किसी भी मौसम में गाए जाते हैं। जैसे राग मेघ और मलहार बरसात के दिनों में गाए जाते हैं। राग बसंत, राग बहार और अन्य राग बसंत में गाए जाते हैं। राग काफी होली के दिनों में लगभग हर समय गाया जाता है। ये राग मौसम के अनुसार गाना बहुत अच्छा है।अध्वदर्शक स्वर 'म' का महत्व :-
अध्वदर्शक स्वर 'म' का अर्थ है रागों का समय दर्शाने वाला स्वर। दिन में गाए जाने वाले रागों में 'म' पूरी तरह से शुद्ध लगता है तीव्र 'म' की प्रधानता रात में गाए गए रागों में रहती है। तीव्र "म" का असर रात 12 बजे के बाद कम होने लगता है। राग दुर्गा और देस इस नियम से बाहर हैं। लेकिन ऐसा कहां नहीं है? दिन में शुद्ध म की प्रधानता राग बिलावलऔर सारंग में रहती है। तीव्र म की प्रधानता रात में मारवा, पूर्वी आदि रागों रहती है। रागों के समय सिद्धांत में अध्वदर्शक स्वर 'म' का महत्वपूर्ण स्थान हम मानते हैं ।निष्कर्ष :-
रागों को अपने समय पर ही गाने बजाने से जो आनंद मिलता है, वह दूसरे समय नहीं मिलता। हालाँकि संगीत सम्मेलन अक्सर शाम को या रात को होते हैं, इसलिए सुबह के राग जैसे तोड़ी, भैरव, रामकली आदि स्टेजों पर नहीं सुनने को मिलते । इसलिए सुबह के राग इस विचार से पीछे शूट गए । हालांकि स्कूलों और कॉलेजों में दिन और रात के राग सिखाए जाते हैं, लेकिन बड़ी-बड़ी स्टेजों पर या अंतर स्कूल कॉलेज मुकाबलों में राग गाने का महत्व समय पर ही दिया जाता है, गाने वालों और सुनने वालों दोनों की ओर से। नियम का पालन करना हमें खुशी देता है, हम चाहे लाख बार इस सिद्धांत की आलोचना करें|
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