॥ तराना ॥
आधुनिक गायन में
एक और प्रकार
है तराना। गायन
में इस प्रकार
के शब्दों में
दिर, दिर, दानी,
तदानी, नोम्, तोम्,
अली, यललि आदि
शामिल हैं। स्वर्गीय
उस्ताद अमीर खां
ने कहा कि
तराना के बोलों
का अर्थ खुदा
की बंदगी होता
है। गुणीजनों का
कहना है कि
तराना के बोल
बिल्कुल अर्थहीन
हैं।
इसमें स्वर और
लय महत्वपूर्ण हैं।
छोटे ख्याल के
बाद तराना गाया
जाता है। इस
गायकी में लय
द्रुत है और
कुछ में सितार,
तबला और पखावज़
के बोल गाते
है। तराने का
मुख्य उद्देश्य जुबान
की तैयारी प्रदर्शित
करना है। इस
गायकी में लय
का महत्त्व अधिक
है। तानरस खां
और नत्थू खां
दोनों के तराने प्रसिद्ध हैं।
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