।। तान ।।
बढ़ना,
तान का अर्थ
है । इससे
गीत का विस्तार
और चमत्कार होता
है। तान एक
व्यक्ति के
स्वर को द्रुत
लय और आकार
में गाना है।
आलाप और तान
केवल लय (गति)
से अलग हैं।
द्रुतलय में
आलाप बजाया जाए
तो वह तान
कहलाएगा। आलाप
भावप्रधान होते
हैं और उनकी
लय धीमी होती
है। तान की
लय तेज होती
है, और तान
में कला और
चमत्कार की
प्रधानता है।
तान में गीत
के बोलों का
प्रयोग करना बोल
तान कहलाता है।
राग के वादी,
संवादी और वर्जित
स्वरों पर ध्यान
तानों को गाते
समय देना चाहिए।
तानों में लय
(गति) बहुत महत्वपूर्ण
होती है, इसलिए
गायक छोटे ख्यालों
(या द्रुत गत)
में बराबर की
लय या दुगुन
में, बड़े ख्यालों
(या विलंबित गत)
में चौगुन या
आठगुन में ताने
गाते हैं, और
वादक कलाकार तोड़े
बजाते हैं। वाद्यों
पर बजते हुए
तानों को तोड़े
कहते हैं। तानों
को सुनकर दिल
खुश हो जाता
है।इसलिए सिर्फ
एक तरह की
तानों से कुछ
नहीं होता।
तानों की बहुत
सी प्रजातियां हैं,
जिनमें से कुछ
निम्नलिखित हैं:-
(1) शुद्ध तान:-
इसे "सपाट तान"
भी कहा जाता
है। शुद्ध तान
राग के आरोह
अवरोह में क्रमानुसार
गाई जाती है।
(2) कूट तान:-
कूट
तान स्वर क्रमानुसार
न होकर टेढ़े-मेढ़े होती है।
(3) मिश्र तान:-
मिश्र
तान शुद्ध और
कूट तान को
मिलाकर बनाता है।
(4) अलंकारिक तान:-
अलंकारिक तान
अलंकार के अनुसार
गाई जाती है।
(5) छूट की तान :-
छूट की
तान तेज गति
से ऊपर से
नीचे या नीचे
से ऊपर गाई
जाएगी।
(6) दानेदार तान:-
दानेदार
तान में "कण" का प्रयोग
होता है।
(7) गमक तान:-
गमक
की तान में
'गमक' का प्रयोग
होता है।
(8) लड़ंत की तान:-
लडंत की तान
को बराबर या
दुगुन, तिगुन या
चौगुन में गाया
जाता है।
(9) बोल तान:-
बंदिश बोलों का प्रयोग स्वरों की
जगह करने वाली
तान बोल तान
कहलाती है।
(10) बराबर की तान:-
बराबर
लय में गाई
गई तान को
बराबर तान कहते
हैं।
(11) फिरत की तान:-
फिरत की तान
में स्वर घुमा
फिरा कर गाया
जाता है।
(12) जबड़े की तान:-
जबड़े की तान
जबड़े की सहायता
से गाई जाती
है।
(13) वक्रतान:-
वक्र तान एक तरह की तान है जिसमें स्वर वक्र की तरह होते हैं।
0 Comments