॥ नाद ।।
नाद एक स्थिर और नियमित अंदोलन-संख्या
है। इस मधुर ध्वनि को संगीत में इस्तेमाल किया जाता है। ध्वनि जो अस्थिर और
अनियमित रहती है, वह संगीत की नहीं होती। नाद नहीं, शोर है। मतंग मुनि ने ब्रहदेशी
ग्रंथ में लिखा,
"ना नादेन बिना स्वरा ना नादेन
बिना गीतं: ।"
ना नादेन बिना शिव ना नादेन बिना ज्ञानं: ।
नाद के बिना न सिर्फ स्वर,
बल्कि ज्ञान और सुख भी नहीं हो सकता।
नाद में दो भेद हैं:
1. आहत नाद:-
आहत
नाद दो वस्तुओं की रगड़ से निकलता है; उदाहरण के लिए, गिटार, सितार की तारें
छेड़ने या बांसुरी में हवा भरने से निकलता नाद।
2. अनाहत नाद:-
अनाहत
नाद बिना रगड़ के होता है ऐसा नाद सिर्फ ज्ञान से पता चलता है। हमारे ऋषि मुनि
दोनों कान जोर से बंद करने पर सांय सांय की आवाज की उपासना करते थे।
नाद के तीन लक्षण
(1) नाद बड़ा या छोटा होना:-
धीरे-धीरे निकलने वाली आवाज को छोटा नाद और जोर
से निकलने वाली आवाज को बड़ा नाद कहते हैं।
(2) नाद की निचाई या ऊँचाई:-
नादों का ऊँचापन (जैसे 'स' से 'रे') और नीचापन (जैसे 'रे' से 'स') अलग-अलग होते हैं। जब एक
नाद दूसरे नाद से ऊँचा होता है उसे नाद का ऊँचापन कहते हैं
(3) नाद की जाति या गुण:-
नाद की जाति या गुण, जैसे गिटार से
गिटार या सारंगी से सारंगी और तबले से तबले की आवाज़ एक दूसरे से
अलग होती है।
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