Natya Shastra (Hindi) || नाट्य शास्त्र ||

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Natya Shastra (Hindi) || नाट्य शास्त्र ||

|| नाट्य शास्त्र ||

        संगीत और नाट्य की एकअमूल्य धरोहर नाट्य शास्त्र है। इसका लेखक महार्षि भरत है। इसमें 36 अध्याय हैं। छ: अध्याय संगीत पर चर्चा करते हैं।
        28वें अध्याय में श्रुति, स्वर, मूर्च्छना, ग्राम, जाति और वायों और लक्षण के चार प्रकारों बताए गए हैं। 29वें अध्याय में जातियों का रसानुकूल उपयोग, विभिन्न प्रकार की वीणा और उनकी वादन प्रक्रिया का वर्णन है। 30वें अध्याय में सुषिर वाघों और 31वें अध्याय में लय, कला और अलग-अलग तालों का वर्णन है। 32वें अध्याय में ध्रुवा, 5 भेद, छन्द और गायक, वादक के गुणों का विवरण है। 33वें अध्याय में अवनद वाद्यों का विवरण और प्रकार, उत्पत्ति, वादन विधि, 18 जातियों और वादकों के लक्षणों का वर्णन है।

        भरत ने 22 श्रुतियों का एक सप्तक   माना था । उनका मूल्य 4:3:2:4:4:3:2: था।
        भरत ने सात शुद्ध स्वर और दो विकृत स्वर बताए। अंतर गंधार और काकली निषाद| नाट्य शास्त्र कहता है कि सात स्वर एक क्रम में होने पर मुर्छना कहलाए। भरत ने एक ग्राम षडज ग्राम और दूसरा ग्राम मध्यम ग्राम माने। विशेष रूप से उनकी व्याख्या की। गंधार ग्राम बताता है कि गंधर्वों के साथ यह भी लुप्त हो गया।
        षडज और मध्यम ग्रामों की 18 जातियां स्वीकार की गईं। जातियों को षडज ग्राम से 7 और मध्यम ग्राम से 11 मानते हुए जाति के 10 लक्षण बताए गए हैं। इसमें अंश, न्यास, अपन्यास, अल्पत्व, बहुत्व और षाडवत्व, औड़वत्व, मन्द्र और तार हैं।

        रस भाव और उनका स्वर से संबंध बताया गया है, सिवाय इसके। यह ग्रंथ निश्चित रूप से संगीत का आधार है।

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2 Comments

Anonymous said…
कुल अध्याय 36 हैं, 28 से 33 तक संगीत से संबंधित है।
V D Mannan said…
Thanks a lot for help