|| मियां तानसेन ||
तानसेन ने इतिहास में कई नाम धारण किए हैं, जैसे रामतनु पांडे, तन्ना मिश्र, वनायो व्यास पांडे, तान सुख आदि। तानसेन जी का असली नाम रामतनु पांडे होना चाहिए क्योंकि वे मरंद पांडे के पुत्र हैं।
इनकी जन्मतिथि को लेकर भी कई मतभेद हैं। अधिकांश ग्रंथकारों का कहना है कि वे 1532
ई. को ग्वालियर से 7 किलोमीटर दूर बेहट नामक गाँव में पैदा हुए थे। माना जाता है
कि मकरंद पांडे को कोई सन्तान नहीं थी। तानसेन जी का जन्म सूफी संत मुहम्मद गौस के
आर्शीवाद से हुआ था। इकलौती संतान होने से बहुत प्यार से पालन पोषण किया गया।
उन्हें दस साल की उम्र में सूफी संत मुहम्मद गौस ने अपने पास बुला लिया। उन्हें पढ़ाया
गया । तानसेन को थोड़े ही समय में साहित्य और ज्योतिष का ज्ञान हुआ। तानसेन जी बचपन
से ही बहुत नटखट थे। विभिन्न पशु पक्षियों की आवाजों को सटीक रूप से नकल कर सकते थे।
जब स्वामी हरिदास जी अपने अनुयायियों के साथ जंगल में से गुजर रहे थे, तो वे एक शेर
की आवाज सुनकर डर गए। बालक के हंसते हुए सामने आने से स्वामी जी बहुत प्रभावित हुए।
तानसेन के पिता की आज्ञानुसार स्वामी हरिदास ने उन्हें वृंदावन ले गए।
10 साल तक तानसेन जी स्वामी हरिदास से पढ़े। आप अपने पिता की तबीयत खराब होने की
खबर सुनकर वापस ग्वालियर आ गए।
तानसेन को पिता जी ने बताया कि सूफी संत
मुहम्मद गौस की कृपा से वह पैदा हुए थे । उनका सम्मान हमेशा करना। फिर तानसेन
स्वामी हरिदास से अनुमति लेकर मुहम्मद गौस के साथ रहने लगे।
तानसेन का कुछ दिनों बाद ग्वालियर की विधवा रानी मृगनयनी से परिचय हुआ। तानसेन की प्रतिभा
उन्हें बहुत प्रभावित करती थी। रानी ने तानसेन को अपने संगीत मंदिर में संगीत सीखने
वाली हुसैनी नामक सुमधुर गायिका से शादी करवा दी। आपके चार पुत्र थे: सुरत सेन, शरत
सेन, तरंग सेन और विलास खां और एक पुत्री सरस्वती। सभी बच्चों ने संगीत में अच्छा नाम
कमाया।
तानसेन जी को राजा रामचंद्र ने दरबारी गायक बनाया क्योंकि वे बहुत अच्छे गायक थे। तानसेन बहुत प्रसिद्ध हुए। सम्राट अकबर और राजा रामचंद्र दोनों
दोस्त थे। राजा अकबर ने रामचंद्र को तानसेन को भेजना चाहा। राजा रामचंद्र को बहुत पीड़ा
हुई, लेकिन बादशाह की आज्ञा को टाला नहीं जा सकता था। वह रोने लगा। तभी तानसेन ने ध्रुपद
लिखा।
"राजा राम चिरंजीव रहो",
तानसेन ने अपने दरबार में राजा अकबर से कहा और उसे अपने नवरत्नों में शामिल कर
लिया। दरबार के अन्य गायक भी बहुत क्रोधित हो गए। बादशाह अकबर ने तानसेन से दीपक राग
सुनने की मांग की। तानसेन के समझाने के बावजूद भी अकबर ने भी गाने को मजबूर किया। गाते
ही गर्मी बढ़ी। गर्मी से घबराकर सभी भागने लगे। तानसेन भी जलने लगा। तभी मेघराग गाकर उनकी
पुत्री सरस्वती ने अपने पिता को बचाया। बाद में राजा बहुत दुखी हुआ।
फिर एक बार अंहकार में आकर, तानसेन ने राज्य को बताया कि उसके बिना कोई भी गाना नहीं
करेगा। जो गाएगा, तानसेन से मुकाबिला करेगा और हारने पर मृत्युदंड मिलेगा। इससे बहुत
से गायक मर गए। बैजूबावरा तानसेन जैसा गायक था। यह सुनकर वह बहुत दुखी हुआ। दोनों
के मुक़ाबले में तानसेन हारा । बैजूबावरा ने खुले दिल से तानसेन को क्षमा की|
तानसेन का संगीत जगत में एक अनमोल
योगदान है।
1। उस ने वीणा के आधार पर "रबाब" नामक वाद्य बनाए।
2। सितार और वीणा के आधार पर "सुर बहार" नामक वाद्य बनाया।
3। तानसेन ने कई नए राग बनाए, जिनमें दरबारी कान्हडा, मियां की सारंग, मियां की मल्हार
और मियां की तोड़ी शामिल हैं । बहुत से रांगों को भी सिद्ध किया। तानसेन ने मुसलमान
धम बाद में स्वीकार किया, लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि तानसेन कभी मुसलमान नहीं
हुए। उन्हें अपने नए रागों में सूफी संत मुहम्मद गौस की याद में मियां शब्द जोड़ा गया।
1585 में महान संगीतकार मौत की गोद
में अंतिम समय के लिए सो गया। इनकी समाधि छोटी सी बारह बुर्जों की है जो कि सूफी
संत मुहम्मद गौस की कब्र के पास है। इस समाधि पर उनकी याद में साल में वहां
शास्त्रीय संगीत के कई सम्मेलन होते हैं जिस में प्रसिद्ध गायक और वादक गायन
और वादन करके उर्स मनाते हैं. ।
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