|| उस्ताद फैयाज खां ||
1886 में आगरा
के निकट सिकंदरा
में उस्ताद फैयाज
खां का जन्म
हुआ। आपके पिता
सफदर हुसैन थे।
आपके पिता बहुत
जल्दी चले गए,
इसलिए आपके नाना
ने आपका पालन
पोषण किया। 5 से
25 साल की उम्र
तक, नाना ने
आपको संगीत सिखाया।
जब फैयाज खां
छोटे थे, वे
बहुत अच्छी तरह
से गाते थे।
आपका प्रभाव हर
संगीत कार्यक्रम पर
अच्छा था। आपके
गायन ने मैसूर
के महाराज को
बहुत प्रभावित किया।
आपको 1906 में स्वर्ण
पदक मिला। 1911 में
आपको
"अफताबे मौसीकी" से सम्मानित किया
गया था। आपको
बड़ौदा के महाराज
सिया जी राव
के दरबार में
दरबारी गायक नियुक्त
किया गया था।
आपको सन् 1935 में
इलाहाबाद विश्वविद्यालय और बंगाल
संगीत परिषद ने
सम्मानित किया।
कुछ समय बाद
महाराज से आज्ञा
लेकर दिल्ली, लखनऊ,
मुम्बई और कलकत्ता
में कार्यक्रम करने
गए। फिर लाहौर
रेडियो स्टेशन पर
अपना कार्यक्रम सुनाकर श्रोताओं
को खुशी दी।
आपका स्वर काफी
नीचे था। आपकी
आवाज बहुत जोरदार
और भरावटपूर्ण थी।
ख्याल, ध्रुपद और
धमार भी आप
अच्छी तरह गाते
थे। आप सभी तरह के गायन में अच्छे थे । ख्याल
में भी ध्रुपद
ने धमार की
तरह नोम् तोम्
कीया । आप भी
कभी-कभी ‘तू
ही आनंत हरि’
गाते थे। आपका
स्वर लगाने का
तरीका आगरा का
घराना प्रतिनिधित्व करता
है।
स्टेज पर पहुंचते
ही आपको लगता
था कि कोई
पहलवान गायक आ
गया है। उसका
कद छह फुट
था। बड़ी-बड़ी
मूंछे से भरा
हुआ शरीर दूर
से ही दिखाई
देता था। 20वीं
सदी में यह
गायक बहुत सम्मानित
हुआ था।
आप भी अच्छे
लेखक थे। आप अपना नाम
"प्रेम पिया" लिखते और गाते
थे। आप बोल-तान और बोल
बनाव दोनों में
बहुत अच्छे थे।
कहीं से भी
गला घुमाकर सम
पर पहुँचते थे।
आपकी सुंदर, स्पष्ट
और तैयार तानें
थीं। राग ज्ञान
अद्भुत था। आप
जैजैवंती, तोड़ी,
ललित, दरबारी, रामकली
आदि रागों को
बहुत पसंद करते
थे।
आपके शिष्यों में
पं० दलीप चंद्र
बेदी, अता हुसैन,
लताफत हुसैन और
शराफत हुसैन के
नाम प्रसिद्ध हैं।
5 नवम्बर 1950 को बडौदा में 64-65 साल की आयु में ये रंगीला गायक इस दुनिया का अलविदा कह गया।
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