Ustad Abdul Karim Khan in Hindi, उस्ताद अब्दुल करीम खान

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Ustad Abdul Karim Khan in Hindi, उस्ताद अब्दुल करीम खान

 

|| उस्ताद अब्दुल करीम खान ||

    11 नवंबर 1872 को किराना गांव, सहारनपुर में उस्ताद अब्दुल करीम खान का जन्म हुआ था। उनके पिता काले खान थे। उनके पिता और चाचा ने उन्हें संगीत का मूल ज्ञान दिया था। उनके पूर्वज वाद्य वादक और  गायक थे। उन्हें बचपन से ही बहुत अच्छा गाना आता था। 6 साल की उम्र में उन्होंने स्टेज पर गाना शुरू किया था। 15 वर्ष की आयु में वे बड़े नरेश के दरबार में गायक के रूप में नियुक्त हुए थे ।
    अपने आप में उस्ताद अब्दुल करीम खां एक अच्छे गायक बन गए थे। किंतु वे चाहते थे कि अधिक अच्छे गायक और वादक पैदा हों। 1913 में, उन्होंने पुणे में आर्य संगीत विद्यालय की स्थापना की, फिर कुछ समय बाद मुंबई में भी शाखा खोली। स्कूल को तीन साल बाद किन्हीं कारणों से बंद करना पड़ा। इसलिए आप मुंबई छोड़कर मिराज गए।
    खां साहब की मीठी और सुरीली आवाज़ वाली गायकी मींड और कण युक्त थी। 'ठुमरी पिया बिन नहीं आवत चैन' उनका सबसे लोकप्रिय गीत था। उनकी मदद से ठुमरी सरल और लोकप्रिय हो गई। उनके ख्याल, ठुमरी, भजन और मराठी गाने बहुत अच्छे थे। उनकी आवाज तार सप्तक के साथ बहुत सरल थी। उन्हें बंद गले का कोट और हाथ में छड़ी रखना बहुत अच्छा लगा। वे शांत, दयालु और सौम्य थे। इसलिए उनके कंठ में बहुत श्रगार और करुणा का रस झलकता था। हीराभाई बारदोकर, स्वयं गंधर्व और बेगम रोशनआरा जैसे महान कलाकार उनके कई शिक्षार्थी बन गए।
    कार्यक्रम के लिए एक बार उन्हें मिराज से मद्रास और वहां से पांडिचेरी जाना था, लेकिन उन्हें रास्ते में बीमार हो गए। यात्रा को रद्द करना पड़ा। समय के साथ साथ उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। माना जाता है कि उन्होंने अपने अंतिम दिन बिस्तर पर ही राग दरबारी कन्हरा की धुन में भगवान की पूजा कीऔर नमाज अदा की, और 27 अक्टूबर, 1937 ई. को अपने अंतिम क्षण के गायन के साथ मर गए। उन्हें ख्वाजा भीरा साहब के पास दफनाया गया था। 

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